World TB Day 2024

आज 24 मार्च को सम्पूर्ण विश्व में विश्व क्षय रोग दिवस (World TB Day 2024) मनाया जाता है 



टीबी (क्षय रोग) के लक्षण

1. लगातार हफ्तों से खांसी का आना और आगे भी जारी रहना।

2. खांसी के साथ खून का आना।

3. छाती में दर्द और सांस का फूलना।

4. वजन का कम होना और ज्यादा थकान महसूस होना।

5. शाम को बुखार का आना और ठंड लगना।

6. रात में पसीना आना आदि  




24 मार्च यानी आज ही के दिन इस बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरिया ट्यूबरक्लॉसिस) की पहचान हुई थी। माइकोबैक्टीरिया ट्यूबरक्लॉसिस रोबर्ट कॉख द्वारा 24 मार्च 1882 को पहचाना और वर्णित किया गया था। उनकी इस खोज के लिये उनको 1905 में फिजियोलॉजी या चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। ट्यूबरक्यूलोसिस एक खतरनाक बीमारी है लेकिन इसका उपचार संभव है। 

आज पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण के बीच वर्ल्ड टीबी डे मनाया जा रहा है । पिछले वर्ष चीन के वुहान से शुरू हुआ कोरोना संक्रमण पूरी दुनिया में फ़ैल गया तब से ही आमजन कोरोना वायरस से बहुत डरने लग गया परन्तु आज दुनिया में आमजन को यह नहीं पता की कोरोना से भी भयानक बिमारी इस दुनिया में मौजूद है और वो है टीबी” ट्यूबरक्लॉसिस  

टी बी फेफड़ों के अलावा ब्रेनयूटरसमुंहलिवरकिडनीगले आदि में भी हो सकती है। फेफड़ों के अलावा दूसरी कोई टीबी एक से दूसरे में नहीं फैलती। टीबी खतरनाक इसलिए है क्योंकि यह शरीर के जिस हिस्से में होती हैसही इलाज न हो तो उसे बेकार कर देती है। यदि फेफड़ों की टीबी की बात करे तो यह फेफड़ों को धीरे-धीरे बेकार कर देती है तो वहीँ दूसरी ओर यूटरस की टीबी बांझपन की वजह बनती हैब्रेन की टीबी में मरीज को दौरे पड़ते हैं तो हड्डी की टीबी हड्डी को गला सकती है।

टीबी (क्षय रोग) एक घातक संक्रामक (एक दुसरे से फैलने वाला) रोग है जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है लेकिन इसका उपचार संभव है।  

टीबी (क्षयरोग) आमतौर पर ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता हैलेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता है। यह रोग हवा के माध्यम से भी फैलता है।

जब (टीबी) क्षय रोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता या छींकता है तो उसके मुंह से संक्रामक ड्रॉपलेट (थूक की बूंद) न्यूक्लीआई उत्पन्न होता हैजो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। यह ड्रॉपलेट न्यूक्लीआई कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। जब एक स्वस्थ व्यक्ति हवा में घुले हुए इन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ड्रॉपलेट न्यूक्लीआई के संपर्क में आता है तो वह इससे संक्रमित हो सकता है।

टीबी का मरीज दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को भी संक्रमित कर सकता है इसलिए टीबी के मरीज को अपने मुंह पर मास्क या अपने मुंह को कपड़े से ढककर बात करनी चाहिए और मुंह पर हाथ रखकर खांसना और छींकना चाहिए।

टी बी के प्रकार

1. पल्मोनरी टीबी - अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों को संक्रमित करता है तो वह पल्मोनरी टीबी (फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाता है। टीबी का बैक्टीरिया 90 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में फेफड़ों को प्रभावित करता है। लक्षणों की बात करे तो आमतौर पर सीने में दर्द और लंबे समय तक खांसी व बलगम होना शामिल हो सकते हैं। कभी-कभी पल्मोनरी टीबी से संक्रमित लोगों की खांसी के साथ थोड़ी मात्रा में खून भी आ जाता है। 

 2. एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी - अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों की जगह शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करता हैतो इस प्रकार की टीबी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाती है। अधिकतर मामलों में संक्रमण फेफड़ों से बाहर भी फैल जाता है और शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित करता है जिसके कारण फेफड़ों के अलावा अन्य प्रकार की टीबी हो जाती हैं। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी अधिकतर कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों और छोटे बच्चों में अधिक आम होता है। 

 

ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के प्रकार

 1. मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी - इस प्रकार की ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का टीबी के जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) पर कोई असर नहीं होता है। अगर टीबी का मरीज नियमित रूप से टीबी की दवाई नहीं लेता है या मरीज द्वारा जब गलत तरीके से टीबी की दवा ली जाती है या मरीज को गलत तरीके से दवा दी जाती है और या फिर टीबी का रोगी बीच में ही टीबी के कोर्स को छोड़ देता है तो रोगी को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी हो सकती है। इसलिए टीबी के रोगी को डॉक्टर के दिशा-निर्देश में नियमित टीबी की दवाओं का सेवन करना चाहिए। 

  

टीबी की जांच कैसे की जाती है ?

 टीबी के लक्षण दिखाई देने पर डॉक्टर द्वारा रोगी को टीबी को जांचने के लिए कई तरह के टेस्ट कराने की सलाह दी जाती हैजो निम्न है -

 1. स्पुटम एएफबी/अन्य फ्लूइड टेस्ट - इस टेस्ट में मरीज के बलगम/अन्य फ्लूइड की लैब में प्रोसेसिंग होने के बाद स्लाइड पर उसका स्मीयर बनाया जाता है फिर उसकी एसिड फास्ट/एलईडी एफएम से जांच स्टैंनिंग की जाती है। स्टैंनिंग के बाद में स्लाइड पर टीबी के जीवाणु की माइक्रोस्कोप के जरिए पहचान की जाती है। माइक्रोस्कोप द्वारा बलगम की जांच में लगभग घंटे का समय लगता है। इस जांच के आधार पर डॉक्टर रोगी का इलाज शुरू कर देता है। 

2. स्किन टेस्ट (मोंटेक्स टेस्ट) - इसमें इंजेक्शन द्वारा दवाई स्किन में डाली जाती है जिससे कि 48-72 घंटे बाद पॉजीटिव रिजल्ट होने पर टीबी की पुष्टि होती है। लेकिन इस टेस्ट में बीसीजी टीका लगे हुए और लेटेंट टीबी संक्रमण का भी पॉजीटिव रिजल्ट आ जाता है।

 3. LPA लाइन प्रोब एसे - यह एक रैपिड ड्रग संवेदनशीलता टेस्ट है। इस टेस्ट के जरिए टीबी के जीवाणु के फर्स्ट लाइन ड्रग्स के प्रतिरोध से जुड़ी जेनेटिक म्यूटेशन की पहचान कर ली जाती है जिसकी वजह से मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी की भी पहचान हो जाती है।

 4. जीन एक्सपर्ट टेस्ट - नवीनतम तकनीक जीन एक्सपर्ट एक कार्टिरेज बेस्ड न्यूक्लीक एसिड एम्फ्लिफिकेशन आधारित टेस्ट है। जीन एक्सपर्ट द्वारा महज घंटे में बलगम द्वारा टीबी का पता लगाया जा सकता है। साथ ही इस टेस्ट में जीवाणु के फर्स्ट लाइन ड्रग रिफाम्पिसिन के प्रतिरोध से जुड़ी जेनेटिक म्यूटेशन तक की भी पहचान कर ली जाती है जिसकी वजह से मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी की भी पहचान हो जाती है।

 

 टीबी का उपचार

 टीबी के जीवाणुओं को मारने के लिए इसका उपचार करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है। टीबी के उपचार में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन हैं और उपचार कई महीनों तक चल सकता है।

 सामान्य टीबी का उपचार 6-9 महीने में किया जाता है। 

मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का प्रभाव खत्म हो जाता है इसके लिए सेकंड लाइन ड्रग्स का उपयोग किया जाता है मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का इलाज साल तक चल सकता है। 


टीबी की रोकथाम

 1. क्षयरोग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से शिशुओं के बैसिलस कैल्मेट-ग्यूरिन (बीसीजी) का टीकाकरण कराना चाहिए। बच्चों में यह 20% से ज्यादा संक्रमण होने का जोखिम कम करता है।

 2. सक्रिय मामलों के पता लगने पर उनका उचित उपचार किया जाना चाहिए। टीबी रोग का उपचार जितना जल्दी शुरू होगाउतनी जल्दी ही रोग से निदान मिलेगा।

 3. टीबी रोग से संक्रमित रोगी को खांसते वक्त मुंह पर कपड़ा रखना चाहिए और भीड़-भाड़ वाली जगह पर या बाहर कहीं भी नहीं थूकना चाहिए।

 4. साफ-सफाई के ध्यान रखने के साथ-साथ कुछ बातों का ध्यान रखने से भी टीबी के संक्रमण से बचा जा सकता है।

 5. ताजे फलसब्जी और कार्बोहाइड्रेडप्रोटीनफैटयुक्त आहार का सेवन कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। अगर व्यक्ति की रोक प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी तो भी टीबी रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है।

फाइल फोटो (फोटो सोर्स - ANI ट्विटर)


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2025 तक टीबी को मिटने की 'टीबी मुक्त भारत अभियान' की शुरुआत की है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश से वर्ष 2025 तक तपेदिक रोग (टीबी) के सफाए का संकल्प लिया है। पीएम मोदी ने 13 मार्च 2018 को नई दिल्ली में टीबी खात्मा शिखर सम्मेलन में टीबी के सफाए के अभियान की शुरुआत की। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा कि इस अभियान को मिशन के रूप में आगे बढ़ाया जाएगा। आपको बता दें कि विश्व भर से टीबी के खात्मे के लिए तय की गई समयसीमा वर्ष 2030 है, जबकि पीएम ने इसके पांच साल पहले ही देश से टीबी के खात्मे का एलान किया है।

वर्तमान में देश में टीबी रोगियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा संचालित डीबीटी (Direct Beneficiary Transfer) योजना भी लागू है जिसके तहत प्रति टी बी मरीज़ को इलाज के दौरान प्रतिमाह 500 रु पोषण हेतु दिए जाते है 

उक्त क्रम में पीएम मोदी अक्सर देश के स्वास्थ्य मंत्री और सेंट्रल टी बी डिवीज़न के अधिकारीयों के साथ टी बी की समीक्षा बैठक कर देश में टी बी के सफाए के अभियान की वस्तुस्तिथि जानते है ।

टीबी हेतु अधिक जानकारी के लिए आप टोल फ्री नंबर 1800-11-6666 पर संपर्क भी कर सकते है । 

Direct Benefit Transfer Scheme

Image Credit : Freepik

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